
नरेश रोहिला / पूरे देश के साथ 20-21 अक्टूबर को उत्तराखंड में दीपावली मनाई गयी लेकिन 11 दिन बाद 1 नवम्बर को उत्तराखंड में एक और दीवाली मनाई जाएगी।
उत्तराखंड में इस विशेष दीवाली का खासा महत्व है।
दीवाली के ठीक 11 दिन मनाए जाने वाली इस दीवाली को कहते है इगास (ग्यारस यानि 11)।कुछ स्थानों पर इसे बग्वाल कहते है। इसी त्योहार का एक नाम बूढी दीवाली भी है।
इगास, बग्वाल या बूढी दीवाली का उतराखंड की खूबसूरत वादियों में बसे लोगो के लिए विशेष महत्व है। यहां के लोग ठीक दीवाली की तरह इस दिन भी अपने घरों को दीपकों, बिजली की लडियों से सजाते है।
मिठाईयां और पकवान बनाते है।हर त्यौहार की तरह उडद की दाल पकोडियां भी बनती है। दीवाली की तरह एक दूसरे को उपहार, मिठाई भेंट की जाती है और एक दूसरे के साथ मिलकर खुशियां मनाते है।
उत्तराखंड में इस त्योहार को खेती किसानी से भी जोडकर देखा जाता है। जैसे देश में दीवाली पर धान की नई फसल से तैयार खील भगवान को अर्पण करते है। वैसे ही इगास पर उत्तराखंड में नये अनाज और उनसे बने व्यंजन भगवान को अर्पित होते है।
कुल मिलाकर उत्तराखंड में यह त्योहार सामाजिक सद्भाव और संस्कृति की परिचायक है।
राज्य के कुछ क्षेत्रों में इस दिन लोग सामूहिक रूप से इकट्ठा होकर भैलो खेलते है।
भैलो चीड की लकड़ियों का एक मशाल नुमा बंधा गटठा होता है जिसे जलाया जाता है। जब बहुत सारे लोग एक साथ भैलो खेलते है तो रात के अंधेरे में सारा वातावरण रोशनी से जगमगा उठता है।
क्यों मनाते है इगास
उत्तराखंड में दीवाली के बाद मनाए जाने वाली दीवाली इगास, बग्वाल के पीछे कई मान्यताएं प्रचलित हैं।
कहते है जब भगवान राम लंका के राजा रावण को मार कर और 14 साल का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे थे तो दीवाली मनायी गयी थी लेकिन यह समाचार उत्तराखंड की सुदूर पहाडियों में 11 दिन बाद पहुंचा था, इसलिए यहां लोगों ने 11 दिन बाद खुशियां मनाई थी। इसीलिए इसे बूढी दीवाली भी कहते हैं।
एक मान्यता यह है कि उत्तराखंड के वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी एक युद्ध जीतकर 11 दिन बाद लौटे। बस तभी से यह त्योहार मनाए जाने लगा। इस त्योहार के पीछे कारण कुछ हो लेकिन अपनी विशेषता के लिए यह उत्तराखंड ही बल्कि देश और विदेशों के लोगों को भी आकर्षित करता है।
देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी
वैसे उत्तराखंड में दीवाली के 11 वें दिन जो इगास या बग्वाल का त्योहार मनाया जाता है। वह देश के अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है। अन्तर यह है कि उत्तराखंड में इसे इगास कहते है और अन्य हिस्सों खासकर उत्तर भारत के अन्य राज्यों में इसे देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी के नाम से जानते है। इस दिन लोगों के घरों में दीवाली की तरह ही पूजा होती है।दीपक जलाए जाते है।मिठाई, पकवान बनाए जाते है। ग्रामीण इलाकों में महिलाएं अपने घर आंगन ऐपण कला से सजाती हैं।
दीवाली के दिन
लक्ष्मी पूजा का प्रचलन है। देवोत्थान एकादशी के दिन लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की भी पूजा होती है क्योंकि मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु चार माह की निद्रा के बाद जागते है। इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहते है। देव उठनी एकादशी का एक विशेष महत्व और है। मान्यता है कि आज के दिन कोई विवाह बिना मुहूर्त निकलवाए भी सम्पन्न हो जाता है। अर्थात यदि किसी विवाह मुहूर्त न निकल पा रहा हो तो देव उठनी एकादशी को ऐसा विवाह सम्पन्न हो सकता है।
इगास, बग्वाल या देव उठनी एकादशी। ये सभी त्योहार हमारी पौराणिक श्रद्धा और आस्था के प्रतीक तो है ही साथ ही प्राचीन संस्कृति और परंपराओं को सुदृढ़ करते है और इनकी रक्षा हमें करते रहना चाहिए ताकि आने वाली पीढियां इनसे परिचित होती रहें और आगे बढ़ाने का काम करते रहे।
मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने प्रदेशवासियों को दी इगास की शुभकामनाएं
राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने प्रदेशवासियों को इगास पर्व की शुभकामनाएं दी है

